वनाधिकार क़ानून आदिवासी का बना हथियार
क्या है वनाधिकार कानून-
अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 एवं 2007 के तहत वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी को काबिज भूमि पर खेती का अधिकार, सामुदायिक अधिकार चाहे किसी नाम से ज्ञात हो इसमें राजाओं एवं जमींदारों के दौरान प्रयुक्त अधिकार शामिल हैं, गौण वन उत्पाद, चारागाहों, जलाशयों, गृह और आवास तथा कोई ऐसा पारम्परिक अधिकार जिसका यथास्थिति, वन निवास करने वाली उन अनुसूचित जनजातियों या अयं परम्परागत वन निवासियों द्वारा रूढ़िगत रूप से उपयोग किया जा रहा हो। कानून में सबसे महत्वूपर्ण अधिकर यह है भी है कि जो अनुसूचित जनजातियों और अयं परम्परागत वन निवासियों के 13 दिसम्बर 2005 से पूर्व किसी भी प्रकार की वन भूमि से पुर्नवास के वैध हक प्राप्त किए बिना अवैध रूप से बेदखल या विस्थापित किया गया हो उसे वनाधिकार का लाभ देने का प्राविधान अधिनियम में दिया गया है। जिसका खुला उल्लंघन दुधवा नेशनल पार्क के अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है।
क्या हैं केन्द्र और प्रदेश सरकार के शासनादेश
वनाधिकार कानून लागू किए जाने के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय भारत सरकार के पत्र फाइल संख्या 7-12/2010 दिनांक 21-06-2010 में अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 की धरा 02 (ख) के अंतर्गत राष्ट्रीयय उद्यानों व अभ्यारण्यों में निर्वासित अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासियों को उनके कव्जे की भूमि पर उनके अधिकारों को मान्यता देने एवं उनके अधिकारों को उन्हे सौपने का आदेश दिया गया है। इसी आदेश के क्रम में उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव (वन अनुभाग 2) के पत्र संख्या 273/14-2-2010 दिनांक 11-10-2010 के शासनादेश में कहा गया है कि राष्ट्रीय उद्यानों व अभ्यारण्यों में निर्वासित अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासियों को उनके कव्जे की भूमि पर उनके अधिकारों को मान्यता देने एवं उनके अधिकारों को उन्हे सौपने हेतु कार्यवाही की जानी है। पुनर्स्थापना के पूर्व राष्ट्रीय उद्यानों व अभ्यारण्यों में अधिकारों से सम्वंधित सभी औपचारिकताएं पूरी करने तक कोई बेदखली एवं पुनर्स्थापना अनुमन्य नहीं है। केन्द्र और प्रदेश की सरकार जहां वनाधिकार कानून को लागू करवाने में गंभीर है वहीं दुधवा के अधिकारी शासनादेशों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं और वनाधिकार कानून को लागू करवाने में अड़ंगे डालकर थारूओं के साथ अन्य परम्परागत वन निवासियों को उजाड़ने की साजिश जरूर कर रहें हैं। इसके कारण पूरे थारू क्षेत्र के निवासियों में रोष फैल गया है।
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