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सुरमा में मनाया गया जश्ने आजादी दिवस

DUDHWA NATURE
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दुधवा/सूरमा-खीरी। आदिवासी जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम यानी वनाधिकार कानून का लाभ लेने वाले पलिया तहसील के ग्राम सूरमा तथा गोलबोझी देश के ऐसे पहले ग्राम हो गए हैं जिनको नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व क्षेत्र के जंगल में रहने के बाद भी इस कानून के तहत घर एवं खेती वाली जमीन का मालिकाना हक मिल गया है। संघर्ष की चौथाई शताब्दी तक अधिकार की लड़ाई लड़ने के बाद मिली विजय पर सूरमा में जश्ने आजादी धूमधाम से मजदूर दिवस के अवसर पर मनाया गया। जिसमें भारी संख्या में लोगों ने गाजा-बाजा के साथ नाच-गाकर जमकर आजादी का जश्न मनाया।
केन्द्र सरकार के बनाए गए आदिवासी जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम के तहत पलिया तहसील के आदिवासी जनजाति थारू क्षेत्र के ग्राम सूरमा एवं गोलबोझी के निवासियों को घर एवं कृषि जमीन का मालिकाना हक मिल गया है। विगत आठ मार्च को गांव पहुंचे डीएम समीर वर्मा ने वर्षो से वन विभाग की गुलामी में जीवन गुजारने वाले थारू परिवारों को अधिकार पत्र सौंपकर एक नए इतिहास की शुरूआत कर की। इससे पूर्व सूरमा और गोलबोझी के थारू परिवार वन विभाग के रहमोकरम पर जीवन गुजारने के साथ ही उनके उत्पीड़न एवं शोषण का शिकार बनकर आजाद भारत में गुलामों जैसा जीवन गुजारने को विवश थे। गांवों में न सड़क, बिजली और न स्कूल बन सके यहां तक थारूजन पक्का मकान भी नहीं बना सकते थे। वनाधिकार कानून के तहत मालिकाना हक मिल जाने के बाद अब गांवों में विकास को गति मिलेगी। दुधवा नेशनल पार्क के जंगल के बीचोंबीच रहने वाले सूरमा के निवासियों ने वन विभाग से हक पाने के लिए चौथाई शताब्दी यानी करीब 25 साल तक कोर्ट कचेहरी का संघर्ष किया इस लड़ाई को विजय मिली वनाधिकार कानून से। इसमें राष्ट्रीय वन जन श्रमजीवी मंच के अशोक चौधरी, रोमा एवं
रजनीश आदि के साथ ही घटक संगठन आदिवासी थारू महिला किसान मंच एवं राज्य स्तरीय वनाधिकार समिति के सदस्य रामचंद्र राणा आदि का सक्रिय सहयोग रहा। परिणाम स्वरूप सूरमा देश का ऐसा पहला ग्राम बन गया है जिसे नेशनल पार्क एवं टाइगर रिजर्व के बीच में होते हुए भी वनाधिकार कानून का लाभ मिला है। वन विभाग की गुलामी से मिली आजादी का जश्न ग्राम सूरमा में एक मई को मजदूर दिवस पर धूमधाम से मनाया गया। मजदूर दिवस के अवसर पर ग्राम सूरमा में मनाए गए विजय दिवस पर हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि प्रदेश सरकार वनाधिकार कानून को लागू कराने के लिए गंभीर है परन्तु प्रशासन एवं वन विभाग के अधिकारी इसमें अडं़गा डाल रहे हैं। थारू क्षेत्र के प्रमुख कस्बा गौरीफंटा एवं चंदनचौकी आदि गांवों में दी गई नोटिसें गैर कानूनी है और संसद का अपमान है। जनसभा को संबोधित करते हुये राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच के अध्यक्ष अशोक चौधरी ने कहा कि उप्र ही नहीं वरन् महाराष्ट्र में भी आदिवासियों को वनाधिकार का लाभ दिया जा रहा है यूपी की सरकार बधाई की पात्र है वह वनाधिकार को लागू करने के लिए प्रयासरत है परन्तु प्रशासन एवं वन विभाग इसमें अडं़गा डाल रहा है वनाधिकार कानून को पूरी तरह से लागू करने के लिए संघर्ष जारी रहेगा। सोनभद्र की शांता भट्टाचार्य, देहरादून के मन्नी लाल, रोमा, प्रदुमन आदि ने विजय दिवस क्यों मनाया जा रहा है इस पर विस्तार से प्रकाश डाला। संचालन करते हुए मंच वरिष्ठ कार्यकर्ता के रजनीश ने कहा कि सूरमा को मिला वनाधिकार ऐतिहासिक है जो एक नजीर बन गया है इससे नेशनल पार्को एवं टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में रहने वाले हजारों गांवों के आजाद होने का नया रास्ता मिल गया है। उन्होंने कहा कि गौरीफंटा एवं चंदनचौकी समेत अयं गांवों को दुधवा पार्क ने नोटिसें जारी की है जो गैर कानूनी है और संसद का अपमान है। इन गांवों के संबंध में तय करने का अधिकार केवल ग्राम स्तरीय वन समिति को है। उन्होंने कहा कि प्रशासन की मनमानी जारी रही तो आंदोलन चलाया जाएगा। सभा की अध्यक्षता ग्राम की थारू महिला झुलसी देवी ने की। राज्यस्तरीय वनाधिकार समिति के सदस्य रामचंद्र राणा ने सभी के प्रति आभार जताया। ग्राम में शाम 5 बजे मजदूर दिवस के अवसर पर जश्न-ए-आजादी की विजय पताका फहराई गई। इस अवसर पर थारू क्षेत्र के सभी गांवों के साथ सोनभद्र, मिर्जापुर, पीलीभीत, सहारनपुर, दिल्ली, लखनऊ, मोहम्मदी आदि तमाम गांवों के हजारों लोग उपस्थित रहे।

सुरमा में मनाया गया विजय दिवस
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